Monday, September 15, 2014

प्रेम-आंकलन

उतरा हूँ सूरज से 
तेरा तेज हरने को 
टपका हूँ चाँद से 
तेरी शीतलता वरने को,
                       तू है ही इतनी ख़ास!

रातों को निकला हूँ
नीरवता तेरी पढ़ने को
दिवस विचरा हूँ तेरी 
चंचलता पकड़ने को,
                              हर पल में तेरा आभास।

शामिल हूँ साँझों में 
तेरी कल्प उड़ानें लिए 
झिलमिल हूँ सितारों में बन
तेरे ज्वलंत रम्य के दीये,
                              आतिश है मेरा प्रयास।

साथी हूँ वात का 
तेरी सुगंध के सायों में 
हूँ बन्धु वारि का तेरे
ओष्ठ रसास्वादनों में,
                                    मेरा है आवरण तेरी श्वास।

तेरा मोह समझने को 
हूँ शिष्य जज़्बात का 
प्रेम तेरे में दमकने को 
हूँ अंकुर विश्वास का,
                                      तू मेरा संपूर्ण सत्व सारांश।।

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